पेट्रोलियम (Petroleum)

परिचय-
इस औषधि की महत्वपूर्ण क्रिया त्वचा पर होती है जिसके कारण अकौता, त्वचा का फटना और फुंसियां उत्पन्न होती हैं। ग्रन्थियों का क्षेत्र और पाचन प्रणाली पर भी इसकी क्रिया का प्रभाव होता है।
कई प्रकार के चर्म रोगों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग होता है, विशेष करके एक्जिमा और छोटी-छोटी फुन्सियों के झुण्ड में (ऐक्जीमा एण्ड हरपेज) जो कि शरीर के किसी भी स्थान में क्यों न हो यह सभी प्रकार के ऐसे चर्म रोगों को ठीक कर देता है।
फुंसियां ज्यादातर कान के अन्दर और कान के चारों ओर या गद्दी और हाथों पर होती है तो इन फुंसियों को ठीक करने के लिए इस औषधि का उपयोग अधिक किया जाता है।
यदि किसी रोगी को नींद के समय में तथा बेहोशी के समय में ऐसा लगता है कि मेरी एक टांग दो टांग हो गई हैं, मेरे बिछौने पर कोई एक दूसरा आदमी लेटा हुआ है, ऐसा लगता है कि मेरे पास दो बच्चे लेटे हुए हैं। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्री को ऐसा लगता है कि वह दो बच्चों की परवरिश कैसे करेगी, इस प्रकार के लक्षण उसे परेशान करते रहते हैं। इस प्रकार के लक्षण अधिकतर प्रसूत ज्वर (पेरपेरल फीवर), टाइफाइड ज्वर (टाइफाइड फीवर) तथा दस्त की बीमारी और अनेकों प्रकार के रोगों में होता है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि उपयोग लाभदायक है।
अधिक दवा के सेवन करने के कारण उत्पन्न रोग या क्विनाइन के प्रयोग से उत्पन्न बुखार को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का उपयोग लाभकारी है।
सल्फार-ग्रैफाइटिस, लाइकोपोडियम तथा कास्टिकम औषधियों की तरह पेट्रोलियम औषधि भी एक ऐन्टिसेरिस औषधि है। शीशे के जहर को खत्म करने के लिए पेट्रोलियम औषधि एक लाभदायक औषधि है।
ठण्ड के मौसम में चर्म रोगी के लक्षणों में वृद्धि, गर्मी के मौसम में अच्छा रहता है, चर्म रोग के लुप्त हो जाने के बाद दस्त की समस्या होने पर पेट्रोलियम औषधि का उपयोग करने से लाभ मिलता है।
विभिन्न लक्षणों में पेट्रोलियम औषधि का उपयोग-

मन से सम्बन्धित लक्षण :- कई प्रकार के चर्म रोगों से पीड़ित रोगी के रोग के लक्षणों में मानसिक कारणों से वृद्धि होती है, रोगी गलियों में अपना रास्ता भूल जाता है, कभी-कभी रोगी सोचता है कि वह दो है या उसके बगल में कोई दूसरा लेटा हुआ है, उसे लगता है कि उसकी मृत्यु होने वाली है जिसके कारण वह कोई भी कार्य जल्दी-जल्दी करने लगता है और अपने कार्य को जल्दी से जल्दी निपटाना चाहता है, रोगी चिड़चिड़ा स्वभाव का हो जाता है और वह सहज ही चिढ़ जाता है और हर विषय के बारे में असन्तुष्ट रहता है, उत्साहहीनता के साथ ही उसकी दृष्टि कमजोर हो जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को सिर में दर्द होता रहता है और ऐसा महसूस होता है कि ठण्डी हवा बह रही हो। सिर में सुन्नपन महसूस होता है और ऐसा लगता है कि सिर कठोर बन जाता है, सिर के पीछे भारीपन महसूस होता है, रोगी को ऐसा लगता है कि नशा हो गया है। अक्सर सिर के पीछे के भाग में दर्द होता है, दर्द जल्दी ठीक नहीं होता है, यह दर्द सिर के ऊपर से माथा और आंखों तक फैल जाती है, दर्द की तेजी के कारण थोड़ी देर तक कुछ दिखाई नहीं देता, शरीर कड़ा पड़ जाता है और बेहोशी आ जाती है, सिर शीशे की तरह भारी महसूस होती है। सिर पर घाव हो जाता है सिर के पीछे कानों पर अधिक। सिर को छूने पर अधिक दर्द महसूस होता है उसके बाद सिर सुन्न पड़ जाता है। सिर में दर्द होता है, सिर दर्द से कुछ आराम पाने के लिए रोगी अपनी कनपटियों को दबाता है, खांसतें समय झटका लगने से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है। इस प्रकार के सिर से सम्बन्धित लक्षणों में पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।
आंखों से सम्बन्धित लक्षण :- आंखों की दृष्टि धुंधली पड़ जाती है, दूरदृष्टि दोष उत्पन्न हो जाता है, बारीक अक्षरों को बिना ऐनक नहीं पढ़ सकता, आंखों से आंसू बहने लगता है, पलकों के किनारों पर जलन होती है तथा आंखों के कोनों में दरारें पड़ जाती हैं। आंखों के चारों ओर की त्वचा सूखी और पपड़ीदार हो जाती है। बरौनिया का झड़ना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।
कान से सम्बन्धित लक्षण :- कानों में कई प्रकार की आवाजें सुनाई पड़ती है और ऐसा लगता है कि शोर मच रहा है, विशेषकर जहां लोग बातें कर रहे हो उस जगह पर। कान के अन्दर और पीछे अकौता, परतदार घाव तथा इसके साथ ही तेज खुजली होना। घाव को छूने पर दर्द होता है। कान के आस-पास की त्वचा पर दरारें पड़ जाती हैं, ठण्ड के मौसम में कान में कई प्रकार की आवाजें सुनाई पड़ती हैं। कानों के अन्दर आवाजें सुनाई पड़ती है। कान से पीब जैसा स्राव होने लगता है तथा कम सुनाई पड़ती है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।
नाक से सम्बन्धित लक्षण :- नाक के नथुने पर घाव हो जाता है तथा नथुना फट जाता है, नाक के अन्दर जलन होती है और खुजली भी होती है। नाक से खून बहना, नाक से पानी गिरने के साथ ही पपड़ियां और कफ के समान स्राव होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
चेहरे से सम्बन्धित लक्षण :- चेहरा सूख जाता है और सिकुड़ा हुआ रहता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।
आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- हृदय में जलन होने के साथ ही गर्माहट महसूस होती है और खट्टी-खट्टी डकारें आती है और पेट फूलने लगता है। पेट के अन्दर खालीपन महसूस होता है, वसायुक्तपदार्थ और मांस खाने का मन नहीं करता है तथा बन्द गोभी खाने से परेशानी होती है। मलत्याग करते ही तुरन्त भूख लग जाती है। जी मिचलाने के साथ ही मुंह में पानी भर जाता है। पाचनतन्त्र में दर्द होता है और जब आमाशय खाली होता है तो लगतार खाते रहने पर आराम मिलता है। भूख तेज लगती है। रात के समय में उठकर कुछ न कुछ खाना पड़ता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तथा इसके साथ ही रोगी को लहसुन की बदबू भी आती है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।
पेट से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को दिन के समय में दस्त हो जाता है और मल पानी की तरह और तेज गति से निकलता है तथा इसके साथ ही मलद्वार पर खुजली भी होती है। बन्दगोभी खाने के बाद दस्त की अवस्था और भी गम्भीर हो जाती है तथा इसके साथ ही आमाशय में खालीपन महसूस होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना चाहिए। पेट खाली रहने पर दर्द होता है, लगातार कुछ न कुछ खाने से आराम मिलता है। गर्भावस्था के समय में पेट में दर्द होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।
पुरुष रोग से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी की नाभि के नीचे और जननेन्द्रिय के ऊपर के भाग में दाद जैसा घाव हो जाता है। पुर:स्थग्रन्थि में जलन होती है और वह सूजी हुई रहती है। मूत्रमार्ग में खुजली होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
स्त्री रोग से सम्बन्धित लक्षण :- मासिकस्राव आने से पहले सिर में कंपन होती है तथा जननेन्द्रियों पर खुजली होती है। प्रदर स्राव अधिक मात्रा में होता है और स्राव में अन्न जैसा पदार्थ भी आता रहता है। जननेन्द्रियों पर घाव हो जाता है तथा इन भागों पर गीलापन महसूस होता है। चूचक पर खुजली होती है और उस पर आटे जैसा लेप लगा हुआ महसूस होता है। प्रतिदिन दिन के समय में प्रदर स्राव आता है और रात को संभोग करने के सपने आते हैं और योनि में खुजली होती है और पसीना आता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी स्त्री को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।
श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- गले में खराश महसूस होती है। रात के समय में सूखी खांसी और घुटन महसूस होती है। खांसी इतनी तेज होती है कि उसके कारण सिर में दर्द भी होने लगता है। छाती में घुटन महसूस होती है तथा ठण्डी हवा अधिक महसूस होती है। रात के समय में सूखी खांसी होती है और खांसी छाती की गहराई से उठती है। स्वरयन्त्र में खराश उत्पन्न होता है और इसके साथ ही डिफ्थीरिया भी हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।
हृदय से सम्बन्धित लक्षण :- हृदय पर ठण्डक महसूस होती है और इसके साथ ही बेहोशी होने लगती है और हृदय की धड़कन भी अनियमित हो जाती है तथा हृदय में अधिक उत्तेजना होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
पीठ से सम्बन्धित लक्षण :- गर्दन के पिछले जोड़ पर दर्द होता है तथा पीठ अकड़ जाती है और उसमें दर्द होता है। कमर के आस-पास कमजोरी महसूस होने के साथ ही दर्द होता है। रीढ़ की हड्डी के निचले भाग में दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।
शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर के किसी भी अंग में पुरानी मोच का रोग। कांख से अधिक मात्रा में बदबूदार पसीना आना। घुटनों में अकड़न होना तथा घुटने पर जलने जैसा दर्द होना। उंगलियों की नोक खुरदरी, फटी हुई तथा ठण्डी महसूस होती है तथा उस पर दरारें पड़ जाती है। शरीर के किसी भी हडि्डयों के जोड़ों पर कड़कड़ाहट होना। इस प्रकार के शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो तो उसे पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।
चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण :- रात के समय में शरीर के कई अंगों में खुजली होना। शरीर के कई अंगों में ठण्ड के कारण उत्पन्न घाव और उसमें जलन होना। ठण्ड के मौसम में उंगलियों का चटकना और उन पर बिवाई रोग होना तथा उसमें दर्द होना। चोट लगने के कारण उत्पन्न जख्म जो बाद में पककर पीब से भर जाता है। बिस्तर पर सोने के कारण उत्पन्न पीठ पर घाव। शरीर की त्वचा सूखी होना और सिकुड़ी हुई रहना, त्वचा खुरदरी और फटी हुई होना तथा कई प्रकार के घाव होना। शरीर की त्वचा पर हल्की सी खरोंच लगने से वह स्थान पककर घाव हो गया हो। त्वचा पर पपड़ीदार घाव होना और हाथ पर फुंसियां होना। त्वचा पर मोटी, हरी रंग की पपड़ियां होना तथा इनमें जलन होना और खुजली होना, त्वचा लाल फटी हुई लगना और घाव में से खून का स्राव होना। अकौता रोग होना। हाथ-पैरों पर लाल, नमकीन स्राव भरा तथा जलन युक्त घाव हो जाता है। त्वचा पर दरार युक्त घाव होना और ठण्ड के समय में इस प्रकार के लक्षणों में वृद्धि होना। त्वचा पर छाजन अर्थात एक्जिमा रोग होने से पहले छोटी-छोटी फुंसियां होती है फिर फूटकर एक हो जाती हैं और उनके ऊपर मोटी सी पपड़ी जम जाती है और उस में से मवाद आता रहता है। पुराने सुज़ाक रोग से पीड़ित रोगी की मूत्रनली में इस कदर खुजली होती है कि रोगी रात भर सो नहीं सकता है। मूत्रद्वार और मलद्वार के बीच के स्थान अर्थात सीवन में (चमतपदमनउ) और पोते में झुण्ड के झुण्ड फुंसिया हो जाती है जिसमें अधिक तेज खुजली होती है और जलन होती है, इन फुंसियों के फुटने से अधिक पानी जैसा दूषित तरल पदार्थ निकलता है। दानें हाथ और पैरों में, जांघ में खोपड़ी पर दोनों कोनों के पीछे, मलद्वार तथा अण्डकोष में एक्जिमा हो जाता है। रोगी के हाथ एक्जिमा के विकार से फट जाते हैं और उनसे खून बहता है। ठण्ड के समय इन रोगों में वृद्धि हो जाती है। रोगी की इस प्रकार के चर्म रोग अक्सर ऐसे स्थान में निकलती हैं जहां की खाल खुश्क, खुरखुरी और चिटकी रहती हैं विशेष करके अंगुलियों के आगे के भाग पर। इस प्रकार के चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
मल से सम्बन्धित लक्षण :- दस्त रोग से पीड़ित रोगी के पेट में दर्द होता है। बन्दगोभी, खट्टी कमरख खाने से, गर्भावस्था या तूफानी मौसम में दस्त हो जाता है। पुराना अतिसार (दस्त) तथा केवल दिन के समय में दस्त आना और रात के समय में आराम मिलता है। मल पीला, पतला और तेज गति से निकलता है। आंतों में दर्द होने के साथ ही दस्त आता है तथा गुदा और गुदानली में डंक लगने जैसी पीड़ा होती है। उघड़ी हुई बवासीर तथा गुदा में घाव की पर्ते बनती हैं। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।
मूत्र से सम्बन्धित लक्षण :- पेशाब करने की अधिक इच्छा होती है और इसके साथ ही मूत्रनली में खुजली भी होती है। पुराना सूजाक रोग होने के साथ ही मूत्रमार्ग पर खुजली होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का सेवन करना चाहिए।
ज्वर से सम्बन्धित लक्षण :- ठण्ड से शरीर में कंपकंपी होकर बुखार आना तथा इसके बाद पसीना आना, सिर और चेहरे पर गर्मी महसूस होना और रात के समय में इस प्रकार के लक्षणों में वृद्धि होना तथा पैरों व कांखों से पसीना आता रहता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।
शीत से सम्बन्धित लक्षण :- शाम के 6 बजे ठण्ड महसूस होती है और नाखून नीले पड़ जाते हैं, खुली हवा में ठण्ड अधिक महसूस होती है और सारे शरीर में खुजली होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।
उत्ताप (गर्म) से सम्बन्धित लक्षण :- सिर गर्म, चेहरा सुर्ख, बुखार की झलक सारे शरीर में महसूस होती है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि उपयोग लाभदायक है।
पसीना से सम्बन्धित लक्षण :- भिन्न-भिन्न समय पर शरीर के कई भागों से पसीना आता है ओर पसीना अधिकतर ठण्ड के बाद आता है और गर्मी महसूस नहीं होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए पेट्रोलियम औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।
वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-
आंधी तूफान आने के समय में या उससे पहले, बन्दगोभी तथा कमरख खाने से, गर्भावस्था के समय में रोग ग्रस्त भाग को छूने से, नमी से, यात्रा करने से, निष्क्रिय गति करने से, ठण्ड के समय में, भोजन करने से और मानसिक दशाओं से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।
शमन (एमेलिओरेशन. ह्रास) :-
सिर को ऊंचा उठाकर लेटने से, गरम हवा से तथा शुष्क प्रदेश में घूमने से रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।
सम्बन्ध (रिलेशन) :-
कार्बो, सल्फ, फास्फो तथा ग्रैफा औषधियों के कुछ गुणों की तुलना पेट्रोलियम औषधि से कर सकते हैं।
पूरक :-
सीपिया।
प्रतिविष :-
नक्स, काक्कूलस औषधि का उपयोग पेट्रोलियम औषधि के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए किया जाता है।
मात्रा (डोज) :-
पेट्रोलियम औषधि की तीसरी से तीसवीं और उच्चतर शक्तियों का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए। स्थूल मात्रायें कभी-कभी रोग के लक्षणों को ठीक करने में अधिक लाभदायक होती है।

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