D – Medicines

डोलीकस Dolisos

परिचय        डालीकस की मुख्य क्रिया यकृत पर होती है। डालीकस औषधि इस प्रकार के उपसर्ग उत्पन्न करता है, जिसके कारण पीलिया का रोग हो जाता है। इससे कब्ज ठीक होकर मल सफेद रंग का होता है। शरीर के विभिन्न अंगों के लक्षणों के आधार पर डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का उपयोग- आंखों से सम्बंधित लक्षण …

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ड्रासेरा (ड्रासेरा रोटिन्डफोलिया) (DORYPHORA)

परिचय        यह औषधि प्रमुख रूप से श्वसन अंगों को प्रभावित करती है। ड्रासेरा औषधि आमतौर पर काली खांसी के लिए बहुत अधिक उपयोगी होता है। इसीलिए होमियोपैथिक आविष्कारक हैनीमैन ने काली खांसी (हूपींग कफ) के लिए इसे प्रमुख औषधि माना है। विभिन्न लक्षणों के आधार पर डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का उपयोग :       सिर …

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डोरीफोरा (DORYPHORA)

परिचय        इस औषधि का उपयोग मूत्रांगों (युरिनरी ओरगेंस) से सम्बंधित विकारों पर अधिक होता है, जिस कारण इसे सूजाक (गिनोरिया) तथा ग्लीट (गीट) में किया जाता है। स्थानिक क्षोभ तथा ग्लीट के कारण बच्चों के पेशाब के मार्ग में होने वाला जलन, शरीर के बाहरी अंगों में भारी कंपन, शरीर में शून्यता का अनुभव …

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डलकैमेरा DULCAMARA

परिचय :        बरसात या नमी के सीजन में ठण्ड लगने के कारण जुकाम, वात रोग या चर्मरोग हो, तो डलकैमेरा औषधि लाभकारी होती है। गर्मी के मौसम में अचानक ही वायु में नमी आ जाने से यदि किसी भी प्रकार का कष्ट हो तो इस औषधि का उपयोग किया जा सकता है। एकोनाइट की …

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डौलीकौस प्यूरियन्स-म्यूक्यूना DOLICHOS PURIENS-MUCUNA

इस औषधि में यकृत एवं त्वचा से सम्बंधित रोगों के लक्षणों की अधिकता पायी जाती है। वृद्धावस्था के समय होने वाली बवासीर, स्नायविक चेतना (नर्वस सेंसीबीलिटी), पूरे शरीर की खुजली आदि विकारों में तीव्र खुजली होती है। शरीर के विभिन्न अंगों के लक्षणों के आधार पर डौलीकौस प्यूरियन्स-औषधि का उपयोग :   गले से सम्बंधित …

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डिफ्थेरीनम (DIOSMA LINCARIS)

परिचय        डिफ्थेरीनम औषधि विशेषरूप से श्वसन सम्बंधी रोगों से पीड़ित रहने वाले रोगियों तथा कंठमाला प्रकृति के रोगियों के लिए आवश्यक है। डिफ्थेरिनम औषधि के प्रधान लक्षण : रोग के प्रारम्भ होते ही नाक से खून निकलता है और बहुत अधिक कमजोरी आ जाती है, शरीर का तापमान पहले की अपेक्षा घट जाता है। …

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डायोस्मा लिंकैरिस (DIOSMA LINCARIS)

परिचय        डायोस्मा लिंकैरिस औषधि जिन रोगजन्य लक्षणों को उत्पन्न करती है वे हैं आलस्य, स्नायु के कारण उत्पन्न अनिद्रा का रोग तथा रात्रि के समय आने वाला पसीना, चिड़चिड़ापन, रोने की इच्छा होना और रोगी होने का डर होना, तेज चक्कर आना, मस्तिष्क का दर्द जो प्रमुख रूप से सिर में होता है। आंखें …

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डायोस्कोरिया विल्लोसा DIOSCOREA VILLOSA

परिचय        इस औषधि का उपयोग हमारे शरीर के विभिन्न प्रकार के दर्दों विशेषकर पेट दर्द एवं शरीर के आन्तरिक अंगों के दर्द में अत्यंत लाभकारी होता है। डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का नाम होमियोपैथिक की उन औषधियों के साथ लिया जाता है जिसका उपयोग एक से अधिक रोगों के इलाज के लिए किया जाता है। …

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डिजिटैलिस DIGITALIS

परिचय        उन सभी रोगों में प्रभावशाली कार्य करती है जहां प्रमुख रूप से हृदय रोग ग्रसित हो, जहां नाड़ी दुर्बल, अनियिमित, सविरामी और असाधारण रूप से शिथिल हो तथा बाहरी और आन्तरिक अंगों पर सूजन हो। हृदय की पेशियों में दुर्बलता और फैलाव पर इस औषधि की क्रिया सर्वोत्तम होती है। इस औषधि का …

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डेस्मोडियम गैंजेटिकम Desmodium Gangeticum

विभिन्न रोगों में उपयोगी : सिर दर्द से सम्बंधित लक्षण : जब किसी व्यक्ति को सिर दर्द में ऐसा महसूस होता हो कि उसके सिर को चारो ओर से कसकर बांध दिया गया हो तो ऐसी स्थिति में डेस्मोडियम गैंजेटिकम औषधि का उपयोग किया जाता है। शारीरिक दर्द से सम्बंधित लक्षण: पूरे शरीर में नाड़ी …

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डेस्मोडियम (DESMODIUM)

 डेस्मोडियम औषधि, ब्रायोनिया और जेलसीमियम औषधि के समान एक भारतीय औषधि है। शरीर के विभिन्न लक्षणों के आधार पर डेस्मोडियम औषधि का उपयोग :        हाथ-पैरों में जलन, नींद न आना, शरीर का दर्द, वात का दर्द, स्नायुशूल अथवा हल्का-हल्का दर्द होना, पीठ में दर्द होने के कारण रोगी ठीक से बैठ नहीं पाता, आंख, …

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डाफ्ने इंडिका (DAPHNE INDICA)

परिचय :        यह औषधि निम्न ऊतकों, मांसपेशियों, हडि्डयों और त्वचा पर अपनी क्रिया करती है तथा उपदंश के विष में उपयोगी होती है। इसकी कमी से शरीर के विभिन्न अंगों में स्पार्किंग के समान झटके महसूस होते हैं।        रोगी में तम्बाकू पीने की तीव्र इच्छा होती है तथा पेट में होने वाली जलन …

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डियुबांयसिया (DUBOISIA)

परिचय        आमतौर पर यह औषधि स्नायुतन्त्र, आंख और श्वसन तन्त्र के ऊपरी भाग पर अधिक प्रभाव डालती है। कभी-कभी स्नायुतन्त्र के क्रियाशील होने के कारण रोगी को प्रतीत होता है कि उसके शरीर के किसी भी अंग में ताकत नहीं है, चलते-चलते व्यक्ति ठोकर खाकर गिर पड़ता है। पैरों में शून्यता आ जाती है …

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