थाइरायडीनम THYRODINUM

परिचय :-
थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग थाइरायड ग्रंथि में खून की कमी को दूर करने के लिए विशेष रूप से लाभकारी माना गया है। यह औषधि शरीर के अन्दर मौजूद सूक्ष्म कणों को बढ़ाने (शीर्णता), पेशी की कमजोरी को दूर करने, पसीना को लाने तथा सिरदर्द आदि को दूर करती है। यह औषधि चेहरे व अंगों की स्नायविक कंपन तथा लकवा आदि रोग के लक्षणों को उत्पन्न करके रोग को जड़ से समाप्त करती है। हृदय में कंपन, आकार का बढ़ जाना, नेत्रोत्सेध (एक्सोफ्टेल्मस) और पुतलियों का फैल जाना। श्लैष्मिक शोथ और मन्दबुद्धि एवं गलगण्ड में इसका प्रयोग अत्यंत लाभकारी होता है। जोड़ों का दर्द एवं सूजन तथा बच्चों का क्षय रोग आदि लक्षणों में इस औषधि का प्रयोग किया जाता है। इस औषधि का प्रयोग ऐसी स्थिति में विशेष रूप से लाभकारी होता है जब किसी बच्चे का अण्ड थैली में नहीं उतरता है, ऐसी स्थिति में थाइरायडीनम औषधि आधा ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार बच्चे को देने से लाभ होता है। परिपोषण सम्बंधी यन्त्रों के नियमन, विवर्द्धन और विकास के लिए थाइरायडीनम औषधि सभी अंगों पर नियंत्रित रूप से प्रभाव डालती है जिसके फलस्वरूप उन अंगों का विकास सही रूप से होता है। थाइरायडीनम औषधि के सेवन से शरीर में थाइरायड की कमजोरी के कारण रोगी को मिठाई खाने की अधिक इच्छा होती रहती है।
थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग विचर्चिका में उत्पन्न लक्षणों को समाप्त करने के लिए की जाती है। इस औषधि का प्रयोग बच्चे के शारीरिक व मानसिक विकास के साथ याददास्त को बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह औषधि गलगण्ड, मोटापा, कमजोरी, पतले रोगी विशेष रूप से खून की कमी के कारण आई दुर्बलता को दूर करती है। आंखों से धुंधला दिखाई देना, स्तनों में फोड़ा होना, गर्भाशय के कीड़े, अधिक कमजोरी तथा अधिक खाने पर भी शरीर पतला रहना, रात को बिस्तर पर पेशाब करने की आदत, स्तनों में दूध का न बनना आदि लक्षणों में थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग करना अत्यंत लाभकारी होता है।
इसके अतिरिक्त बेहोशी, जी मिचलाना, ठण्ड अधिक महसूस होना, रोग के कारण कमजोरी, थकावट उत्पन्न होना, नाड़ी का कमजोर होना, बार-बार बेहोशी उत्पन्न होना, हृदय में कंपन होना, पैर-हाथ ठण्डे पड़ जाना, निम्न रक्तचाप (लो ब्लडप्रेशर) तथा ठण्ड के प्रति अधिक संवेदनशीलता आदि लक्षणों में थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग किया जाता है। यह औषधि का प्रयोग श्लैष्मिक शोफ और विभिन्न प्रकार के सूजनों में तेज क्रिया करती है और उसके लक्षणों को समाप्त करती है।
शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर थाइरायडीनम औषधि का उपयोग :-
मन से सम्बंधित लक्षण :- मानसिक रूप से असन्तुलन के कारण रोगी में अधिक चिड़चिड़ापन आ जाता है तथा रोगी की बातों को न मानने या बातों को काटने पर गुस्सा हो जाता है। छोटी-छोटी बातों पर लड़ने व गुस्सा करने लगता है। ऐसे मानसिक लक्षणों से पीड़ित रोगी को ठीक करने के लिए थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होता है।
सिर से सम्बंधित लक्षण :- रोगी को ऐसा महसूस होता है जैसे कि उसका सिर हल्का हो गया है। हमेशा सिरदर्द रहता है। आंखों के गोलक बाहर फैल जाते हैं। चेहरे की पेशियों में खून की कमी तथा होंठों पर जलन महसूस होती रहती है। जीभ पर गाढ़ा लेप जैसा महसूस होता है। सिर में पूर्णता व गर्मी महसूस होती है तथा चेहरा लाल हो जाता मानो रोगी बहुत गुस्से में हो। मुंह का स्वाद खराब होना आदि सिर से सम्बंधित लक्षणों में रोगी को थाइरायडीनम औषधि देने से रोग समाप्त होता है।
हृदय से सम्बंधित लक्षण :- हृदय की कमजोरी तथा नाड़ी की गति तेज होने के साथ लेटने में कष्ट होना। हृदय की धड़कन तेज होना (हाई ब्लडप्रेशर)। छाती के आस-पास घुटन महसूस होने के साथ ऐसा लगना जैसे छाती सिकुड़ गई है। हल्के काम करने पर ही हृदय में कंपन होने लगना। हृदय में तेज दर्द होना। हृदय में अपने-आप उत्पन्न होने वाली उत्तेजना तथा हृदय कमजोर होने के साथ अंगुलियों का सुन्न पड़ जाना आदि हृदय से सम्बंधित लक्षणों में रोगी को थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
नाक से सम्बंधित लक्षण :- नाक से सम्बंधित लक्षण जिसमें नाक सूखी रहती है परन्तु खुली हवा में जाने से नाक से नजला आने लगता है। ऐसे लक्षणों में थाइरायडीनम औषधि लेनी चाहिए।
आंखों से सम्बंधित लक्षण :- आंखों की रोशनी समाप्त होने के साथ स्नायुपटल केन्द्र में काली बिन्दियां बनना आदि लक्षणों में थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग अत्यंत लाभकारी होता है।
गले से सम्बंधित लक्षण :- गले का सूख जाना, गले की नाड़ी में खून का जमा हो जाना, गले में कच्चापन महसूस होना, गले का घेंघा रोग होना, गलगण्ड तथा गले में जलन होना विशेष रूप से बाईं ओर। गले से सम्बंधी ऐसे लक्षणों में रोगी को थाइरायडीनम औषधि लेनी चाहिए।
आमाशय से सम्बंधित लक्षण :- किसी कारण से आमाशय रोगग्रस्त होने पर रोगी में विभिन्न लक्षण उत्पन्न होते है जैसे- मिठाई खाने की अधिक इच्छा करना तथा ठण्डा पानी पीने की अधिक इच्छा करना। पेट में गड़गड़हट महसूस होना। जी मिचलना विशेषकर गाड़ी आदि से सफर करते समय। पेट फूल जाने के साथ पेट में वायुगैस का बनना आदि आमाशय के लक्षणों में थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
मूत्र से सम्बंधिक लक्षण :- पेशाब का अधिक मात्रा में आना, पेशाब का बार-बार आना तथा पेशाब के साथ सफेद रंग का या शर्करा की मात्रा आना। पेशाब से बनफ्शे की तरह गंध आना, मूत्रनली में जलन होना तथा पेशाब के साथ यूरिक एसिड अधिक मात्रा में आना आदि मूत्र से सम्बंधित लक्षणों में थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए। कमजोर बच्चे के बिस्तर पर पेशाब करने की आदतें विशेषकर स्नायविक व चिड़चिड़े बच्चे में ऐसी आदते उत्पन्न होने पर थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।
सांस संस्थान से सम्बंधित लक्षण :- सूखी दर्द वाली खांसी के साथ हल्का कष्टकारी बलगम आना और ग्रासनली में जलन होना आदि लक्षणों में थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण :- जोड़ों में जलन होने के साथ मोटापा बढ़ने की प्रकृति तथा हाथ-पैरों में ठण्ड। कमर से नीचे की त्वचा में पपड़ियां बनना। हाथ-पैर ठण्डे पड़ जाना। अंगों में हल्का दर्द रहना। ठण्डी हवा से बंद कमरे में आने पर खांसी होना। पैरों में पानी भरना तथा पूरे शरीर में कंपन होना आदि बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षणों में रोगी को थाइरायडीनम औषधि देने से रोग ठीक होता है। इस औषधि का प्रयोग बच्चों का सूखा रोग आदि को दूर करता है।
त्वचा से सम्बंधित लक्षण :- त्वचा सूखी व अपुष्ट। हाथ-पैर ठण्डा होना। त्वचा पर दाद होना। गर्भाशय के सौत्रिक फोड़े। त्वचा पर कत्थई रंग की सूजन होना। ग्रंथियों की पत्थर की तरह कठोर सूजन। त्वचा का सुन्न पड़ जाना। त्वचा पर मटमैला पसीना आना। कामला के साथ तेज खुजली। मछली की तरह त्वचा से पपड़ियां बनना तथा टी.बी. रोग के लक्षण वाले सूजन। सूखी खुजली होना जो रात को अधिक हो जाता है। ऐसे लक्षणों में रोगी को थाइरायडीनम औषधि देने से रोग ठीक होता है।
वृद्धि :-
हिलने-डुलने या किसी भी प्रकार के शारीरिक हलचल होने पर, ठण्डी हवा में घूमने के बाद कमरे में आने पर तथा अधिक बोलने से रोग बढ़ता है।
शमन :-
पेट के बल लेटने से तथा आराम करने से रोग में आराम मिलता है।
तुलना :-
थाइरायडीनम औषधि की तुलना स्पांजिया, कल्के, फ्यूकस, लाइकोपस, नक्स-वो, ओपि, फास, मर्क, नैट्र-म्यू, लायको, काली-फा, जेल्स, कल्के-फा, बैरा-का, औरम, सीपि, साइ, वेरेट्रम, जिंक, ओपि तथा आयोडो थाइरीन औषधि से की जाती है।
मात्रा :-
थाइरायडीनम औषधि की 6 से 30 शक्ति का प्रयोग किया जाता है।
सावधानी :-
थाइरायडीनम औषधि डेढ़ से 2 ग्राम की मात्रा में देनी चाहिए। रोगी को यह औषधि अधिक मात्रा में भी दी जा सकती है परन्तु अधिक मात्रा देने से नाड़ी की गति तेज हो जाती है। अत: ऐसे में औषधि का प्रयोग सावधानी से करें। हृदय की कमजोरी के साथ उच्च रक्तचाप होने पर तथा क्षयरोगियों के लिए औषधि की सामान्य मात्रा ही प्रयोग करना चाहिए।
विशेष:-
आयोडो थाइरीन औषधि एक प्रकार के थाइरायड ग्रंथि से निकला हुआ एक सक्रिय तत्व है जिसमें आयोडीन और नाइट्रोजन की अधिकता होती है। इसलिए इस औषधि के प्रयोग करने से पोषणक्रिया की रोगग्रस्तता दूर होती है, वजन घटता है तथा मधुमेह (डाइबिटीज) उत्पन्न कर सकता है। इस औषधि का प्रयोग मोटापे में सावधानीपूर्वक करना चाहिए।

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