परिचय :-
टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया औषधि का प्रयोग करने से वीर्य की दुर्बलता खत्म होकर वीर्य पुष्ट होता है। यह बुखार को ठीक करती है विशेष रूप से सविरामी बुखार को। यह औषधि पीलिया, प्लीहा (तिल्ली) के घाव (स्प्लेनिक अफैक्शन), कुष्ठ रोग, आमवाती गठिया (जोड़ों का दर्द) तथा त्वचा के रोग आदि को ठीक करती है। गौण उपदंश (सकैन्ड्री साइफील्स), प्रदर-स्राव, मूत्र रोग, पेशाब करने में कठिनाई तथा सूजाक रोग आदि को दूर करने के लिए इस औषधि का प्रयोग किया जाता है।
शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया औषधि का उपयोग :-
बुखार से सम्बंधित लक्षण :- पुराने या नए मलेरिया का बुखार होना तथा दोपहर के बाद ठण्ड लगना और कंपकंपी होना। पित्त की उल्टी होना और अधिक प्यास लगने के साथ सिरदर्द होना। पुराने बुखार के रोग के साथ पुराना सुजाक रोग तथा वीर्यपात के कारण उत्पन्न शारीरिक कमजोरी। कुनीन औषधि के सेवन से उत्पन्न हानि जिसके कारण बुखार होता तथा हाथों व चेहरे पर जलन होती रहती है। पीलिया रोग होना आदि। इस तरह के लक्षणों में रोगी को टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया औषधि देने से बुखार के साथ उत्पन्न होने वाले सभी लक्षण समाप्त होते हैं।
मूत्र से सम्बंधित लक्षण:- मूत्राशय से सम्बंधित ऐसे लक्षण जिसमें पेशाब बार-बार आता है परन्तु पेशाब करने पर कम मात्रा में पेशाब आता है। पेशाब करते समय मूत्रनली में जलन होती है। सूजाक रोग के कारण पेशाब के साथ पीब का आना आदि मूत्र रोग के लक्षणों में रोगी को टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया औषधि लेनी चाहिए।
मात्रा :-
टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया औषधि के मूलार्क, 1x, 3x या 6 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।