सैबाडिल्ला (सैबाडिल्ला सीड-असाग्रैइया आफिसिनैलिस) Sabadilla (Cabadilla Seed-Asagraea officinalis)

परिचय-
शरीर में छोटे-छोटे चूने, फीते की तरह के कीड़े और हर तरह के कीड़ों को समाप्त करने के लिए सैबाडिल्ला एक बहुत ही लाभकारी औषधि मानी जाती है। कीड़ों से होने वाले बहुत से रोगों को दूर करने के लिए इस औषधि का प्रयोग किया जाता है। बच्चों के पेट में होने वाले कीड़ों को समाप्त करने के लिए भी इस औषधि को बहुत असरकारक माना जाता है।
विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर सैबाडिल्ला औषधि का उपयोग-
मन से सम्बंधित लक्षण- रोगी को हर समय एक तरह का डर सा लगा रहता है। रोगी बैठे-बैठे ही चौंक पड़ता है। रोगी स्त्री को अपने आप ही मन में अजीब-अजीब से विचार पैदा हो जाते हैं जैसे कि वह अपने आप को रोगी समझने लगती है, उसे लगता है कि वह मां बनने वाली है, उसे कैंसर का रोग हो गया है। रोगी रुक-रुककर आने वाले बुखार के दौरान बहुत तेजी से चीखता-चिल्लाता है। इन सारे मानसिक रोगों के लक्षणों के आधार पर अगर रोगी को सैबाडिल्ला औषधि देने से वो कुछ ही दिन में ठीक हो जाता है।
सिर से सम्बंधित लक्षण-रोगी को अपना सिर घूमने के साथ-साथ आसपास की सारी चीजें भी घूमती हुई सी नज़र आती है। रोगी की आंखों के सामने अंधेरा सा छाने लगता है। किसी भी प्रकार की गंध आते ही रोगी के सिर में दर्द चालू हो जाता है। किसी भी बात को सोचने से रोगी को सिर में दर्द और नींद आने लगती है। रोगी की पलकें लाल होने के साथ-साथ उनमें जलन भी होने लगता है, आंखों से हर समय आंसू से निकलते रहते हैं, किसी की कही गई बात साफ तौर पर सुनाई नहीं दे पाती। इस तरह के सिर के रोगों के लक्षणों में रोगी को सैबाडिल्ला औषधि देने से लाभ होता है।
नाक से सम्बंधित लक्षण-रोगी को सर्दी-जुकाम लगने के कारण बार-बार छींके आना और नाक से बहुत ज्यादा मात्रा में स्राव का होना, आंखों के लाल होने के साथ-साथ माथे में बहुत तेजी से दर्द का होना और आंखों से पानी का आना, रोगी की नाक से बहुत ज्यादा मात्रा में पानी जैसा पतला सा स्राव आते रहना जैंसे लक्षणों में सैबाडिल्ला औषधि का प्रयोग लाभदायक सिद्ध होता है।
गले से सम्बंधित लक्षण-गले में बहुत तेजी से दर्द जो बाईं तरफ से शुरू होता है। गले से बहुत ज्यादा मात्रा में ठोस सा बलगम आना। रोगी अगर गर्म भोजन करता है और गर्म पेय पदार्थ पीता है तो उसे आराम आता है। रोगी को अपना गला और गलकोश सूखे हुए से महसूस होते हैं। रोगी की गले में बहुत तेज जलन जो ठण्डी हवा से ज्यादा हो जाती है। जीभ ऐसी महसूस होती है जैसे कि उसे किसी ने जला दिया हो। इन लक्षणों के किसी रोगी में मिल जाने पर उसे सैबाडिल्ला औषधि देने से वह कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
आमाशय से सम्बंधित लक्षण- रोगी को प्यास बिल्कुल न लगना, तेज भोजन को देखते ही जी का खराब हो जाना, सूखी खांसी होना, सांस लेने में परेशानी होने के साथ ही रोगी के आमाशय में बहुत तेज दर्द का उठना, मीठी चीजों और आटे से बनी चीजों को रोगी को जितना भी खिला दो उसकी भूख शांत नहीं होती। मुंह में पानी भर जाना, मुंह से बहुत ज्यादा लार का गिरना, मुंह का स्वाद मीठा सा होना। रोगी को अपने आमाशय के अंदर बहुत ज्यादा ठण्डक और खालीपन सा लगना। इन सारे लक्षणों के रोगी में पाए जाने पर उसे सैबाडिल्ला औषधि देनी चाहिए।
शरीर के बाहरी अंग से सम्बंधित लक्षण- रोगी के पैरों की उंगलियों के नीचे की चमड़ी का फट जाना, पैरों की उंगलियों के नाखूनों के नीचे जलन सी होना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को सैबाडिल्ला औषधि देने से लाभ मिलता है।
स्त्री रोगों से सम्बंधित लक्षण- स्त्री को मासिकस्राव समय से बहुत बाद में आना आदि लक्षणों में रोगी को सैबाडिल्ला औषधि का प्रयोग कराना लाभकारी रहता है।
बुखार से सम्बंधित लक्षण-रोगी को बुखार आने के लक्षणों में सबसे पहले शरीर में नीचे से ऊपर की तरफ ठण्ड पहुंचती रहती है, रोगी के सिर और चेहरे में गर्मी सी बढ़ जाती है। रोगी के हाथ-पैर बहुत ज्यादा ठण्डे हो जाते है। बुखार होने पर रोगी के आंखों से पानी आता रहता है। बुखार के दौरान रोगी को बिल्कुल प्यास नही लगती। इन सारे लक्षणों के आधार पर रोगी को सैबाडिल्ला औषधि देने से लाभ मिलता है।
वृद्धि-
दोपहर से पहले, रात या दिन में 10 या 12 बजे के बीच में, ठण्ड से, आराम करते समय, ठण्डे पीने वाले पदार्थो से, फूलों या दूसरे किसी चीज की खुशबू से रोग बढ़ जाता है।
शमन-
किसी तरह की हरकत करने से, निगलने से, गर्म होने पर, गर्म भोजन को खाने से रोग कम हो जाता है।
अनुपूरक-
सीपिया।
प्रतिविष-
कोन, लैके, लायको, सल्फ औषधि का उपयोग सैबाडिल्ला औषधि के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए किया जाता है।
तुलना-
सैबाडिल्ला औषधि की तुलना वेरेट्रिना, लैनोलिन, काल्चिक, नक्स, अरुण्डों, पोलैटिन फ्लियम प्रैटेन्स-टिमोथी, कुमैरीनम से की जा सकती है।
मात्रा-
रोगी को सैबाडिल्ला औषधि की 3 से 30 शक्ति तक देनी चाहिए।

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